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ग़ज़लिया सल्तनत: शेखरी शोख़ी

इसकी तासीर न चाँदनी को मिली न चाँद को मिली है ये प्यार है प्यारे ! होश उड़ा ले जाने को बेताबी खिली है : फूल लाख कोशिश करे उड़ ही जाती है उसकी ख़ुशबू चाँद जी - जान लगा दे मगर चाँदनी का फैल जाए लहू आफ़ताब भी मेरा दोस्त है और उसका सुनहरी रौशनी उफ़क पर जब उभरती है तो दोस्ती की ज़द में माहरू बेइंतेहा इश्क़ की रस्में कुछ बाक़ी हैं उलझो मत इनमें तुम ऐसा करो चाँदनी का उबटन लगा हो जाओ रुबरू सुर्ख़रू लाज के मारे हो रही या गुस्सा के कारन मेरी जां आओ बैठो इतने नज़दीक़ कि चाँद सिमटाए जुस्तजू और ऐन अंत में जब आहट मिले किसी के आने - जाने की तुम फेंकना अपना जाल ऐसा कि पाँव चाँदनी की आरज़ू शेखर लफ़्ज़ों के तिलिस्म से बचो वर्ना बंद कर दूँगी मैं एक काजल की कोठरी में जहाँ न चाँद दाग़ी ही न तू

ग़ज़लिया सल्तनत: तुकबंदगी

शब्दों के अंतरा और शुरुआत और अंत में कोई भेद नहीं है यां तुम गाओ हम गाएं कोई गीत कोई मीत कोई संगीत पी है सैयां: शब्द नन्हे-नन्हे उतरते हैं फ़क़ीरी आसमान से बारिश की तरह और मेरा तन-मन-जतन-मनन-आँगन भींगता है ओज में बह-बह मेरी गिनती शुरू होती है किसी एक से भी नहीं फिर भी क्योंकि तेरी गिनती की गिरह खुलती है तो तेरा-मेरा सोलह-सतरह सह जो तेजी से धड़के वो कलेजा नहीं शोला है शोला यह जान कर उसने कर दिया माफ़ एक और ख़ून और मैं रहा रिहा-रिहा रह क, ख, ग, घ, ङ बस इतनी सी बात कहने के लिए शब्दकोश है लेकिन मुर्गी के टाँग खाने के लिए छुरी-काँटा निषेध है क्यों छह अलङ्कार श्रृंगार व्यापार बाजार संसार सब हार बस धार पा के हम ये किस घाट पर आए हैं जीवन को मद्धम मान के शांतिमय बेतरह ये यौवन एक फुंकार है बच के रहना जी ये यौवन मँझदार की लौ इस यौवन में हम-तुम-तुम-हम दोनों गिरें तो कहो कौन पाए कह शेखर एक जीवन नहीं अनेक चाहिए जीने के लिए जां की जागीर एक जीवन तो सब का है एक जीवन जाएगा बीत जैसी गाँठ-गिरह

ग़ज़लिया सल्तनत

गहरे पानी से किसको डर लगता है भई पानी तो धो देता है दरपन हर दिन कई: इतने गहरे मत उतरो कि डूब ही जाओ आओ ज़रा किनारे बैठ मूँगफ़ली खाओ गहरा पानी तेज़ बहाव क्या तेज़ बहाव डूबना है तो पानी से क्या तुम कतराओ उधर सूरज का डूबना इधर सितार झन अबके बरस इतना ही सिंगार सजाओ डूब-डूब जो पार हो वो इश्क़ है प्यारा नाँव में चढ़ जो पार हुआ उससे शरमाओ नदिया की उमंग कभी ख़ुशी कभी ग़म सिनेमा के गीत भी ज़रा गा-गुनगुनाओ कटता है सीना जब नदी का बाज़ू कटे इस तरन्नुम को भेज भेजे से पार लगाओ वो हताश उदास लिबास पहने कहाँ जाएं आएं यां आएं उदासी उतार कर सताओ नंगे पैर पानी में डाल छप-छप करते रहें कोई छाप-तिलक ले कंगन खनखनाओ उनका दिन हमारा गाँव राजी-खुशी ठाँव फिर उनसे भी ऊपर कोई कवि नहाओ कान्हा की चितवन गोपी का दरस लाज कोई काज न कीजै बस राखिए न जाओ गए वो मोरनी जंगल की ओर नाचने नाच हमने कहा तो वो बोले आ साज लजाओ शेखर गुलबी घाट गाँधी घाट रानी घाट घाट-घाट का पानी पीओ और पिलाओ

Jottings of an idle soul

हर दरिया मजबूर है बहने के लिए कौन आया है यहाँ सदा रहने के लिए दिल और दर्द का रिश्ता गहरा है दोनों बने हैं एक दूसरे को सहने के लिए तेरे दामन से उलझा तो पता चला कभी कांटे भी होते हैं महकने के लिए इस पुरानी मय की तासीर तो देखो पीता हूँ अब इसे संभलने के लिए जब लगा मुझे भूल गए हो तुम ख़ुद को मजबूर किया सरकने के लिए उसकी याद में मैं ने रेत पर कुछ लिखा फिर मिटा दिया उस का मान रखने के लिए ओस की बूँद पर सूरज की किरन मीलों की दूरी कुछ नहीं गले लगने के लिए तुम्हारी आँखों में झाँका तो देखा लम्हा बेताब है सदियों से लिपटने के लिए जब ख़ुदा ऊब गया अकेलेपन से अपने उसने ख़ुदाई बनाई तन्हाई से लड़ने के लिए तेरी राह तेरे लिए मेरी राह मेरे लिए यह समझ ज़रूरी है साथ चलने के लिए रात के बाद दिन दिन के बाद रात सदियां चाहिए इत्ती सी बात समझने के लिए सब उलझे हैं दोज़ख और जन्नत की फ़िक्र में हम उचक रहे हैं ख़ुदा का दीदार करने के लिए कुछ नया कहना चाहा फिर सोचा कुछ बचा भी है दुनिया में नया कहने के लिए सीधी रेखा इकाई गोल रेखा सिफ़र इतने निशां का