ग़ज़लिया सल्तनत: तुकबंदगी
शब्दों के अंतरा
और शुरुआत और अंत में कोई भेद नहीं है यां
तुम गाओ हम गाएं
कोई गीत कोई मीत कोई संगीत पी है सैयां:
शब्द नन्हे-नन्हे
उतरते हैं फ़क़ीरी आसमान से बारिश की तरह
और मेरा तन-मन-जतन-मनन-आँगन
भींगता है ओज में बह-बह
मेरी गिनती शुरू
होती है किसी एक से भी नहीं फिर भी क्योंकि
तेरी गिनती की
गिरह खुलती है तो तेरा-मेरा सोलह-सतरह सह
जो तेजी से धड़के
वो कलेजा नहीं शोला है शोला यह जान कर
उसने कर दिया
माफ़ एक और ख़ून और मैं रहा रिहा-रिहा रह
क, ख, ग, घ,
ङ बस इतनी सी बात कहने के लिए शब्दकोश है
लेकिन मुर्गी
के टाँग खाने के लिए छुरी-काँटा निषेध है क्यों छह
अलङ्कार श्रृंगार
व्यापार बाजार संसार सब हार बस धार पा के हम
ये किस घाट पर
आए हैं जीवन को मद्धम मान के शांतिमय बेतरह
ये यौवन एक फुंकार
है बच के रहना जी ये यौवन मँझदार की लौ
इस यौवन में
हम-तुम-तुम-हम दोनों गिरें तो कहो कौन पाए कह
शेखर एक जीवन
नहीं अनेक चाहिए जीने के लिए जां की जागीर
एक जीवन
तो सब का है एक जीवन जाएगा बीत जैसी गाँठ-गिरह
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